शिबू सोरेन(Shibu Soren )की कहानी: एक बेटे से दिशोम गुरु बनने तक का प्रेरणादायक सफर
जब भी आदिवासी अधिकारों, संघर्ष और नेतृत्व की बात होती है, एक नाम सबसे पहले ज़हन में आता है — शिबू सोरेन। वो न सिर्फ झारखंड के एक कद्दावर नेता बने, बल्कि आदिवासी समाज की वो आवाज़ बन गए, जिसे सदियों से दबाया जा रहा था।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस ‘दिशोम गुरु’ का सफर कैसे शुरू हुआ? ये कहानी सिर्फ राजनीति की नहीं, बल्कि एक बेटे के अपने पिता के लिए उठे दर्द, न्याय के लिए जिद और समाज के लिए लड़ाई की कहानी है।
👦 जब एक बेटे की दुनिया उजड़ गई…
साल था 1957। शिबू सोरेन एक मासूम छात्र के रूप में हॉस्टल में पढ़ाई कर रहे थे। उनके पिता, जो पेशे से शिक्षक थे, अपने बेटे के लिए चावल और ज़रूरी सामान लेकर हॉस्टल आ रहे थे — लेकिन रास्ते में बेरहमी से उनकी हत्या कर दी गई।
ये वो पल था जिसने शिबू की पूरी ज़िंदगी की दिशा बदल दी। पढ़ाई छूट गई, मन टूट गया… लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उसी दिन उन्होंने फैसला कर लिया कि वो अन्याय के खिलाफ आवाज़ बनेंगे। और यहीं से शुरू हुआ उनका संघर्षमय सफर।
🏡 साधारण परिवार, लेकिन बड़े सपने

शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को नेमरा गांव, जिला रामगढ़ (झारखंड) में हुआ था। उनके पिता स्कूल में शिक्षक थे और दादा अंग्रेज़ों के ज़माने में टैक्स अधिकारी। एक पढ़ा-लिखा, इज्ज़तदार परिवार — लेकिन किस्मत कुछ और ही लिख चुकी थी।
⚔️ महाजनों के खिलाफ बगावत: जब शुरू हुआ ‘धनकटनी आंदोलन’
पिता की मौत के बाद शिबू ने समाज के लिए कुछ करने की ठानी। उन्होंने देखा कि किस तरह से महाजन (सूदखोर) गरीब आदिवासियों को लूटते हैं, उनकी ज़मीनें हड़प लेते हैं।
इसी अन्याय के खिलाफ उन्होंने ‘धनकटनी आंदोलन’ छेड़ा। वो जबरन महाजनों की धान की फसल कटवाकर, उन्हें आदिवासी किसानों को लौटा देते थे। ये एक साहसिक कदम था।
धीरे-धीरे आदिवासी युवा तीर-कमान लेकर उनके साथ खड़े हो गए। और यहीं से शिबू सोरेन बने “दिशोम गुरु”, यानी “देश का गुरु”।
🗳️ राजनीति की राह: हार नहीं मानी, विश्वास नहीं टूटा

राजनीति की शुरुआत आसान नहीं थी। पहले पंचायत चुनाव हारे, फिर विधानसभा चुनाव भी। लेकिन वो रुके नहीं, झुके नहीं।
फिर आया साल 1980, जब उन्होंने दुमका से लोकसभा चुनाव लड़ा — बिना पैसे के, सिर्फ जनता के भरोसे पर। उन्होंने गांव-गांव जाकर लोगों से एक पाव (250 ग्राम) चावल और 3 रुपये मांगे, ताकि चुनाव लड़ सकें।
लोगों ने उनका साथ दिया — और उन्होंने जीत हासिल की।
🏆 8 बार सांसद, 3 बार मुख्यमंत्री
शिबू सोरेन 8 बार दुमका से लोकसभा सांसद चुने गए — 1980 से लेकर 2014 तक।
वो तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने — 2005, 2008 और 2009 में।
बीच में उन पर एक केस भी चला, जेल भी जाना पड़ा, लेकिन बरी होकर फिर वापसी की।
केंद्र सरकार में वो केंद्रीय मंत्री भी रहे।
उनका राजनीतिक सफर उतार-चढ़ावों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी।
👨👦 आज बेटा चला रहा है विरासत
आज शिबू सोरेन के बेटे हेमंत सोरेन, झारखंड के मुख्यमंत्री हैं और अपने पिता की तरह ही जनता की आवाज़ बने हुए हैं।
शिबू सोरेन अब सक्रिय राजनीति में नहीं हैं, लेकिन उनकी सोच, संघर्ष और सेवा का सपना आज भी जिंदा है।
🌟 Shibu Soren: एक सच्चे योद्धा की मिसाल
शिबू सोरेन की कहानी हमें सिखाती है कि अगर इरादे मजबूत हों, तो कोई भी बेटा ‘गुरुजी’ बन सकता है। चाहे रास्ता कितना भी मुश्किल क्यों न हो, अगर आपका मकसद सही हो, तो मंज़िल जरूर मिलती है।
एक बेटे से शुरू हुआ सफर, एक आंदोलनकारी, नेता और फिर दिशोम गुरु तक पहुँचना — यही है शिबू सोरेन की सच्ची, प्रेरणादायक कहानी।